योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं: जानिए क्या है योग?
21/06/2019
योग शब्द संस्कृत धातु 'युज' से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग, भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है । हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं, जहाँ लोग शरीर को मोडते, मरोड़ते, खिंचते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। यह वास्तव में केवल मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता का खुलासा करने वाले इस गहन विज्ञान के सबसे सतही पहलू हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है|गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर कहते हैं, "योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछएक झलक देता है।"
योग का इतिहास
योग दस हजार साल से भी अधिक समय से प्रचलन में है। मननशील परंपरा का सबसे तरौताजा उल्लेख, नासदीय सूक्त में, सबसे पुराने जीवन्त साहित्य ऋग्वेद में पाया जाता है। यह हमें फिर से सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के दर्शन कराता है। ठीक उसी सभ्यता से, पशुपति मुहर (सिक्का) जिस पर योग मुद्रा में विराजमान एक आकृति है, जो वह उस प्राचीन काल में योग की व्यापकता को दर्शाती है। हालांकि, प्राचीनतम उपनिषद, बृहदअरण्यक में भी, योग का हिस्सा बन चुके, विभिन्न शारीरिक अभ्यासों का उल्लेख मिलता है। छांदोग्य उपनिषद में प्रत्याहार का तो बृहदअरण्यक के एक स्तवन (वेद मंत्र) में प्राणायाम के अभ्यास का उल्लेख मिलता है। यथावत, ”योग” के वर्तमान स्वरूप के बारे में, पहली बार उल्लेख शायद कठोपनिषद में आता है, यह यजुर्वेद की कथाशाखा के अंतिम आठ वर्गों में पहली बार शामिल होता है जोकि एक मुख्य और महत्वपूर्ण उपनिषद है। योग को यहाँ भीतर (अन्तर्मन) की यात्रा या चेतना को विकसित करने की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।
प्रसिद्ध संवाद, “योग याज्ञवल्क्य” में, जोकि (बृहदअरण्यक उपनिषद में वर्णित है), जिसमें बाबा याज्ञवल्क्य और शिष्य ब्रह्मवादी गार्गी के बीच कई साँस लेने सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सफाई के लिए आसन और ध्यान का उल्लेख है। गार्गी द्वारा छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में बात की गई है।
अथर्ववेद में उल्लेखित संन्यासियों के एक समूह, वार्ता (सभा) द्वारा, शारीरिक आसन जोकि योगासन के रूप में विकसित हो सकता है पर बल दिया गया है| यहाँ तक कि संहिताओं में उल्लेखित है कि प्राचीन काल में मुनियों, महात्माओं, वार्ताओं (सभाओं) और विभिन्न साधु और संतों द्वारा कठोर शारीरिक आचरण, ध्यान व तपस्या का अभ्यास किया जाता था।
योग धीरे-धीरे एक अवधारणा के रूप में उभरा है और भगवद गीता के साथ साथ, महाभारत के शांतिपर्व में भी योग का एक विस्तृत उल्लेख मिलता है।
बीस से भी अधिक उपनिषद और योग वशिष्ठ उपलब्ध हैं, जिनमें महाभारत और भगवद गीता से भी पहले से ही, योग के बारे में, सर्वोच्च चेतना के साथ मन का मिलन होना कहा गया है।
हिंदू दर्शन के प्राचीन मूलभूत सूत्र के रूप में योग की चर्चा की गई है और शायद सबसे अलंकृत पतंजलि योगसूत्र में इसका उल्लेख किया गया है। अपने दूसरे सूत्र में पतंजलि, योग को कुछ इस रूप में परिभाषित करते हैं:
" योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "-
पतंजलि का लेखन भी अष्टांग योग के लिए आधार बन गया। जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञा और बौद्ध धर्म के योगाचार की जडें पतंजलि योगसूत्र मे निहित हैं।
मध्यकालीन युग में हठ योग का विकास हुआ।
योग के ग्रंथ: पतंजलि योग सूत्र
पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है और उनके योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञान के लिए समर्पित रहे हैं।
प्राचीन शास्त्र पतंजलि योग सूत्र, पर गुरुदेव के अनन्य प्रवचन, आपको योग के ज्ञान से प्रकाशमान (लाभान्वित) करते हैं, तथा योग की उत्पति और उद्देश्य के बारे में बताते हैं। योग सूत्र की इस व्याख्या का लक्ष्य योग के सिद्धांत बनाना और योग सूत्र के अभ्यास को और अधिक समझने योग्य व आसान बनाना है। इनमें ध्यान केंद्रित करने के प्रयास की पेशकश की गई है कि क्या एक ‘योग जीवन शैली’ का उपयोग योग के अंतिम लाभों का अनुभव करने के लिए किया जा सकता है|
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गुरुदेव ने भी योगसूत्र उपनिषद पर बहुत चर्चा की है। गीता पर अपनी टिप्पणी में उन्होंने, सांख्ययोग, कर्मयोग, भक्तियोग, राजगुहिययोग और विभूतियोग की तरह, योग के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डाला है |
योग के प्रकार
"योग" में विभिन्न किस्म के लागू होने वाले अभ्यासों और तरीकों को शामिल किया गया है।
'ज्ञान योग' या दर्शनशास्त्र
'भक्ति योग' या भक्ति-आनंद का पथ
'कर्म योग' या सुखमय कर्म पथ
राजयोग, जिसे आगे आठ भागों में बांटा गया है, को अष्टांग योग भी कहते हैं। राजयोग प्रणाली का आवश्यक मर्म, इन विभिन्न तरीकों को संतुलित और एकीकृत करने के लिए, योग आसन का अभ्यास है।
सभी के लिए योग
योग की सुंदरताओं में से, एक खूबी यह भी है कि बुढे या युवा, स्वस्थ (फिट) या कमजोर सभी के लिए योग का शारीरिक अभ्यास लाभप्रद है और यह सभी को उन्नति की ओर ले जाता है। उम्र के साथ साथ आपकी आसन की समझ ओर अधिक परिष्कृत होती जाती है। हम बाहरी सीध और योगासन के तकनिकी (बनावट) पर काम करने बाद अन्दरूनी सुक्ष्मता पर अधिक कार्य करने लगते है और अंततः हम सिर्फ आसन में ही जा रहे होते हैं।
योग हमारे लिए कभी भी अनजाना नहीं रहा है। हम यह तब से कर रहे हैं जब हम एक बच्चे थे। चाहे यह "बिल्ली खिंचाव" आसन हो जो रीढ़ को मजबूत करता है या पवन-मुक्त आसन जो पाचन को बढ़ाता है, हम हमेशा शिशुओं को पूरे दिन योग के कुछ न कुछ रूप करते पाएंगे। बहुत से लोगों के लिए योग के बहुत से मायने हो सकते हैं। होते "योग के जरिये आपके जीवन की दिशा" तय करने में मदद करने के लिए दृढ़ संकल्प है!
सांस लेने की तकनीक प्राणायाम और ध्यान (Dhyaan)
सांस का नियंत्रण और विस्तार करना ही प्राणायाम है। साँस लेने की उचित तकनीकों का अभ्यास रक्त और मस्तिष्क को अधिक ऑक्सीजन देने के लिए, अंततः प्राण या महत्वपूर्ण जीवन ऊर्जा को नियंत्रित करने में मदद करता है । प्राणायाम भी विभिन्न योग आसन के साथ साथ चलता जाता है। योग आसन और प्राणायाम का संयोग शरीर और मन के लिए, शुद्धि और आत्म अनुशासन का उच्चतम रूप माना गया है। प्राणायाम तकनीक हमें ध्यान का एक गहरा अनुभव प्राप्त करने हेतु भी तैयार करती है।
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Report:-HCN Team
Himachal Crime News
HP Bureau
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