चुनावी मुद्दा: हिमाचल में ओपीएस कांग्रेस का बड़ा हथियार, भाजपा वीरभद्र सरकार को ही ठहरा रही जिम्मेदार

हिमाचल क्राइम न्यूज़
शिमला। पॉलिटिकल डेस्क
 


 हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) विपक्ष के हाथ में बड़ा हथियार बन गया है। ओपीएस की बहाली नहीं करने को कांग्रेस बड़ा मुद्दा बना चुकी है। यह तक ऐलान कर चुकी है कि सत्ता में आती है तो पहली कैबिनेट बैठक में ही इसे बहाल कर देगी, वहीं भाजपा ओपीएस को खत्म करने और नई पेंशन स्कीम को लागू करने के लिए कांग्रेस की वीरभद्र स्कीम को ही जिम्मेवार ठहरा रही है। ओपीएस में पेंशनरों को कर्मचारी के रूप में अंत में ड्रॉ किए वेतन का 50 फीसदी ही मिलता है। इसके विपरीत एनपीएस एक कंट्रीब्यूटरी स्कीम है, जिसमें कर्मचारियों को अपने वेतन का दस प्रतिशत हिस्सा देना होता है। सरकार कर्मचारी के एनपीएस खाते में 14 प्रतिशत भाग डालती है। राज्य में वर्ष 2003 से पहले नियुक्त 1,90,000 कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ मिल रहा है। इसके बाद जो कर्मचारी नियुक्त किए गए हैं, उन्हें नई पेंशन स्कीम में ही पेंशन मिलेगी। वर्ष 2003 के बाद सरकारी नौकरी में आए इस तरह के कर्मचारियोें की संख्या करीब 1,10,000 है, जो पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली मांग रहे हैं। जयराम सरकार ने इस पर खूब मंथन किया, मगर सरकार प्रदेश की आर्थिक तंगहाली के बीच इस पर फैसला नहीं ले सकी। पेंशनरों की संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) बैठक में भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठा। हालांकि, जयराम सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाकर न्यू पेेंशन स्कीम में कई अन्य लाभ जोड़ने की बात की। इस संबंध में विधानसभा सत्र के दौरान कर्मचारियों ने एक बड़ा प्रदर्शन भी किया, जिसमें एक नारा बहुत विवादित रहा। 



सभी को पुरानी प्रणाली से ही पेंशन मिलनी चाहिए : आत्मा राम शर्मा 
हिमाचल प्रदेश पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष आत्मा राम शर्मा ने कहा कि सभी को पुरानी प्रणाली से ही पेंशन मिलनी चाहिए। यह कर्मचारियों से भेदभाव है। यह शुरू से मिलती रही है। संवैधानिक प्रावधान भी पेंशन देने का है। जिस तरह का जीवन स्तर कर्मचारी का पहले था, वैसा ही बाद में भी रहे, इसका यही उद्देश्य है। 

 
ओपीएस ओल्ड पेंशन सिस्टम है। यह राजनीतिक लोगों को भी पता नहीं है कि यह स्कीम है कि एक प्रणाली है। स्कीम एक निश्चित समय या तय लाभार्थियों के लिए होती है। यह सिस्टम अंग्रेजों के समय से लागू था। यह योजना सामाजिक सुरक्षा के लिए रही है। यह प्रणाली चलती रही। 1920 में भारत में लागू करना शुरू किया गया। 1957 में इस प्रणाली को पूरे भारत में लागू किया गया। 1972 में पेंशन के नए नियम बनाए गए। इसके अनुसार इसे हिमाचल में भी लागू किया गया। सारे विभागों, कुछ निगमों, बोर्डों, विश्वविद्यालय में भी लागू किए गए। 1998 में एक भट्टाचार्य कमेटी का गठन किया गया कि मौजूदा पेंशन प्रणाली पर विचार किया जाए जो आर्थिक सुधार के बारे में पहला कदम था। सामाजिक सुरक्षा को खत्म करने की दिशा में यह पहला कदम उठाया गया। हिमाचल सरकार ने 15 मई 2003 को पेंशन सिस्टम को न्यू पेंशन का नया नाम दिया, जो छह महीने पहले हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया। हिमाचल सरकार ने भारत सरकार के साथ के साथ एक एमओयू किया। इस सामाजिक आर्थिक सुरक्षा रिफार्म को लागू करने के लिए भारत इस आधार पर एनपीएस का जन्म हुआ। यह प्रणाली कंट्रीब्यूटरी होगी और मार्केट के आधार पर लागू की जाएगी। इस प्रणाली के आधार पर न्यूनतम और अधिकतम पेंशन तय नहीं है। यह शेयर मार्केट पर निर्भर करेगा। 21 जनवरी 2003 को तत्वकालीन सीएम प्रेम कुमार धूमल सरकार ने चार आईएएस अधिकारियों की कमेटी बनाई। इसके अध्यक्ष विनीत चौधरी थे। इसके टर्म्स ऑफ रिफ्रेंस में 21 जनवरी 2003 को सेल्फ फाइनांस आधार पर एक रिपोर्ट बनाने को कहा। इस कमेटी की रिपोर्ट नवंबर 2003 को कमेटी के अध्यक्ष विनीत चौधरी ने उस वक्त की वीरभद्र सरकार के समकक्ष रखा। फि र इसे लागू किया गया। कर्मचारियों में इस स्कीम को बहाल नहीं किए जाने से रोष है। - गोविंद चतरांटा, हिमाचल प्रदेश कॉरपोरेट सेक्टर वर्कर्स कोऑर्डिनेशन कमेटी शिमला के समन्वयक।
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