दिलदहलाने जैसी वारदात! दराट से युवक ने भरे बस अड्डे पर युवती पर किया जानलेवा ह*मला
हिमाचल क्राइम न्यूज़
पालमपुर। विशाल मनकोटिया
- सचेत समाज की मरी हुई मासिकता का प्रतीक बनी पालमपुर घटना।
- प्रदेश में कानून की सुचारू व्यवस्था पूरी तरह चरमराई।
- समाज ने भी अपनी-अपनी मानसिकता सोशल मीडिया पर दर्शाई।
- पहले पालमपुर, फिर टांडा और अब पीजीआई में संघर्ष कर रही बेटी।
खोखली मानसिकता और कायरता एक सचेत समाज की सूचक नहीं हो सकती। ये बात आज प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा के पालमपुर नए बस अड्डे की घटना के लिए एकदम सही साबित होती है। पूरे घटनाक्रम के बारे में हम सब जान ही चुके होंगे, बेशक अपने प्रदेश से मीलों दूर बैठे हों। एक मनचले और वहशी ने किन्हीं निजी कारणों के चलते एक मासूम बच्ची पर जानलेवा हमला किया है। हैरानी की बात तो ये है कि ये सब कुछ दिन दहाड़े सैंकड़ों लोगों की भीड़ के सामने खुलेआम हो रहा था। आरोपी के हाथ में धारदार हथियार देख कुछ देर तक तो आसपास के लोग डर से कुछ नहीं कर पाए लेकिन हाँ, बाद में उन्होंने जमकर उसकी धुनाई की। इस प्रकरण को आप मॉबलिंचिंग भी कह सकते हैं। लेकिन क्या फ़ायदा, तब तक लड़की गंभीर रूप से घायल हो चुकी थी। आस पास के लोगों का डर भी हमलावर को न डरा पाया और उसने अपने डर को मारकर हैवान का वेश धारण कर लिया।
हर अपराध की तरह इस मामले में भी पुलिस के हवाले आरोपी को कर दिया गया और घायल लड़की को पहले स्थानीय अस्पताल में और टांडा रेफर कर दिया गया। ताज़ा जानकारी के अनुसार अब वो बेटी चंडीगढ़ के PGI में दाखिल है जहां वो अभी ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है। बहरहाल, इस घटना की बहुत सारी ऐसी डिटेल्स हैं जो अलग अलग चैनल्स पर उपलब्ध हैं। इसलिए हम ज़्यादा डिटेल में यहां बात नहीं करेंगे।
अपराधी ने अपना अपराध भी स्वीकारा है और "उसे इस बात का कोई पछतावा भी नहीं है"।
सबको पता है कि कानून अपने हाथ में नहीं लेना है और आगे जो भी होगा वो कानून ही करेगा। लेकिन यहां इस प्रकरण के बाद कुछ अहम सवाल छूट जाते हैं।
ज़माना सोशल मीडिया का है तो लाज़िम है कि हर तरह की मानसिकता के लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं भी सोशल मीडिया पर देंगे। क्योंकि ये वही देश है, जिस देश में महिलाओं पर हिंसा का समर्थन करने वाली फिल्में अक्सर कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ जाती हैं और उनके नायक हमारे करोड़ों युवाओं के मनपसंद हीरो भी होते हैं।
तो पहला सवाल जो यहां उठता है वो ये कि आख़िर उस लड़के में इतनी हिम्मत आई कैसे ?
कैसे एक नौजवान लड़का इतना उग्र हो गया कि बिना कानून की परवाह किए वो सैंकड़ों लोगों के बीच इतना बड़ा अपराध कर गया?
क्या उसे कानून का कोई खौफ नहीं था ?
आख़िर कहाँ गई प्रदेश की सुचारू, सदृढ़ और मज़बूत कानून व्यवस्था?
हालांकि आधिकारिक रूप से इस घटना के कारणों पर अभी पुलिस ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन आम भाषा में बात करें कुछ लोगों के मुताबिक इनका कोई चक्कर चल रहा होगा। वाह रे इस देवभूमि के नागरिक, क्रूरता की हदें पार हो जाएं, फिर भी तुम्हें ऐसी बातें करके बस स्वाद ही लेना है।
एक बड़ा तबका इस घटना के पश्चात उस दोषी लड़के के घर को गिराने की और उनके परिवार के सामाजिक बहिष्कार की बात कर रहा है। ये बात आख़िर कहां तक सही है ?
हम सब मनुष्य कहलाने का अधिकार खो देंगे अगर आज इस घटना पर चुप्पी साध ली। और यदि हम मनुष्य हैं तो आखिर हमारी मनुष्यता कहां है ?
ये कानून का राज है या फिर कोई जंगल राज, जहां अदालतें नहीं भीड़ फ़ैसला करेगी।
कानूनी रूप से तो क्या होगा और क्या नहीं, ये तो आने वाला समय ही बेहतर बता पायेगा लेकिन एक बात तो तय है कि अभी तक हम सबके सामाजिक ठेकेदार यानि हम सबके बड़े बड़े नेता इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसी पर क्यों, महिलाओं के प्रति होने वाले हर अपराध पर बड़े बड़े सम्माननीय नेता लोग चुप्पी साध लेते हैं।
लेकिन एक बात हम सबको याद रखनी होगी कि आज जो कुछ पालमपुर में एक बच्ची के साथ हुआ तो कल को प्रदेश के किसी भी हिस्से में हमारी या आपकी बच्चियों के साथ भी हो सकता है। इसलिए इस मामले की संजीदगी को समझिए और इस मानसिकता का विरोध कर इसे खत्म करने की दिशा में प्रयास करें।
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