तेजस एक्सप्रेस रद्द: निजी ट्रेन चलाने के मोदी सरकार के सपने को कितना बड़ा धक्का?
हिमाचल क्राइम न्यूज़ ब्यूरो
भारत में चलने वाली पहली कॉरपोरेट सेक्टर की ट्रेन 'तेजस' पर कुछ समय के लिए ब्रेक लग गया है. आईआरसीटीसी ने दिल्ली-लखनऊ और मुंबई-अहमदाबाद के बीच चलने वाली तेजस ट्रेन को अगली सूचना तक रद्द करने का फ़ैसला किया है. यह फ़ैसला दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस के लिए 23 नवंबर से और मुंबई-अहमदाबाद तेजस एक्सप्रेस के लिए 24 नवंबर से लागू है.
आईआरसीटीसी के प्रवक्ता सिद्धार्थ सिंह का कहना है कि कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन में ट्रेन चलाने के लिए यात्री नहीं मिल रहे थे. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि दिल्ली-लखनऊ रूट पर औसतन 25 फ़ीसद यात्री भी सफ़र नहीं कर रहे थे, जबकि मुंबई-अहमदाबाद रूट पर ट्रेन औसतन 35 फ़ीसद ही भर पा रही थी.
तेजस ट्रेन उन पहली ट्रेनों में शुमार थी जिनको देश भर में लगने वाले लॉकडाउन के पहले ही 19 मार्च 2020 को बंद कर दिया गया था. इसके बाद त्योहारों के सीज़न को देखते हुए 17 अक्तूबर 2020 को इन्हें दोबारा से शुरू किया गया था.
लेकिन महीने भर बाद इसे दोबारा बंद करने की नौबत आ गई.
दिल्ली-लखनऊ के बीच तेजस ट्रेन अक्तूबर 2019 से शुरू हुई थी. मुंबई-अहमदाबाद तेजस ट्रेन इसी साल जनवरी में शुरू की गई थी.
कुल मिला कर देखें तो दिल्ली-लखनऊ तेजस ट्रेन पिछले एक साल में केवल छह महीने ही पटरी पर दौड़ी.
तेजस ट्रेन - नया प्रयोग
तेजस एक्सप्रेस भारतीय रेल और आईआरसीटीसी का एक नया प्रयोग माना जा रहा था. चर्चा इस बात की थी कि अगर ये प्रयोग सफल हुआ तो अन्य रूट पर भी दोहराया जाएगा.
इस रेल सेवा को भारत की पहली निजी या कॉरपोरेट सेवा भी कहा जाता है. आईआरसीटीसी ने तेजस को रेलवे से लीज़ पर लिया है और इसका कमर्शियल रन किया जा रहा है. आईआरसीटीसी अधिकारी इसे प्राइवेट के बजाए कॉरपोरेट ट्रेन कहते हैं.
आईआरसीटीसी के मुताबिक़ इन ट्रेनों को इतनी कम सीटों पर चलाने से ट्रेन के लिए ज़रूरी ख़र्च निकालना मुश्किल हो रहा था.
आईआरसीटीसी की दलील है कि कोविड-19 बीमारी का क़हर ख़त्म होने के बाद ये रेलगाड़ियां पटरी पर लौट सकती हैं.
लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि औसतन ये ट्रेन कभी भी 100 फ़ीसद सीटें भर कर नहीं चलीं.
आईआरसीटीसी के अनुमान के मुताबिक़ अगर ट्रेन 70 फ़ीसद सीट भर कर चलती हैं तो उनका 'ब्रेक इवन' हासिल किया जाता है.
'ब्रेक इवन' यानी ट्रेन चलाने के लिए ज़रूरी ख़र्च यात्रियों से निकालना.
कितने का नुक़सान, कितने की बचत
दरअसल, इन ट्रेनों को आईआरसीटीसी ने कॉरपोरेट अंदाज़ में चलाने के लिए तीन साल के लिए लीज़ पर लिया था. इसमें केटरिंग के लिए थर्ड पार्टी को कॉन्ट्रेक्ट दिया गया था. बाक़ी का ऑपरेशन जैसे बुकिंग, ट्रेन लाना ले जाना वगैरह ख़ुद आईआरसीटीसी देख रही थी.
ट्रेन चलाने के लिए आईआरसीटीसी को एक 'ऑपरेटिंग कॉस्ट' रेलवे को देना होता था, जिसका एक बड़ा हिस्सा होता है 'हॉलेज़ चार्ज'.
रेलवे की पटरियों, स्टेशन और दूसरी सुविधाओं का इस्तेमाल जब कोई दूसरी पार्टी करती है तो उसके एवज़ में रेलवे प्राइवेट पार्टी से 'हॉलेज़ चार्ज' वसूल करती है.
आईआरसीटीसी को 'हॉलेज़ चार्ज' के रूप में 950 रुपये प्रति किलोमीटर प्रति दिन के हिसाब से रेलवे को देना पड़ता था.
दिल्ली से लखनऊ रूट पर चलने वाली तेजस एक्सप्रेस का ही उदाहरण ले लीजिए. 511 किलोमीटर एक तरफ़ की दूरी है. जाना और आना मिला लें तो लगभग 1022 किलीमीटर की दूरी है. यानी लगभग 10 लाख रुपये तो आईआरसीटीसी को केवल 'हॉलेज़ चार्ज' के रूप में एक तेजस ट्रेन के लिए देने पड़ रहे थे.
इसके अलावा ड्राईवर, गार्ड और दूसरे स्टॉफ़ की सैलरी है अलग से.
सूत्रों के मुताबिक़ एक दिन का 'ऑपरेटिंग कॉस्ट' तक़रीबन 15 लाख रुपये बैठ रहा था. जो ट्रेन बंद होने की सूरत में आईआरसीटीसी को अब रेलवे को नहीं देना होगा.
तेजस ट्रेनें रद्द करके आईआरसीटीसी अपना यही 'ऑपरेटिंग कॉस्ट' बचाना चाहती है.
केटरिंग और बाक़ी कान्ट्रेक्ट के कर्मचारियों का क्या?
तेजस पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसमें एयर होस्टेस की तर्ज़ पर ट्रेन होस्टेस की व्यवस्था की गई थी. उन्हें थर्ड पार्टी कॉन्ट्रेक्ट के ज़रिए रखा गया था.
इसी अतिरिक्त सेवा के नाम पर ट्रेन का किराया भी दूसरी ट्रेनों के मुक़ाबले ज़्यादा रखा गया था.
दिल्ली से लखनऊ के बीच 511 किलोमीटर का सफ़र इस ट्रेन से साढ़े छह घंटे में पूरा किया जा सकता है. इस ट्रेन का किराया भी इस रूट पर चलने वाली शताब्दी ट्रेन से तक़रीबन 400-500 रुपये ज़्यादा ही था.
राजधानी की तर्ज़ पर इसमें भी 'डायनमिक प्राइसिंग' लगता था. 'डायनमिक प्राइसिंग' यानी पचास फ़ीसद सीटें भर जाने के बाद डिमांड के हिसाब से किराया बढ़ जाया करता था.
लेकिन कोरोना के दौर में तो पचास फ़ीसद सीटें भरने के भी लाले पड़े थे.
तेजस एक्सप्रेस के दस डिब्बों में 20 कोच क्रू तैनात होते थे. ये सभी आईआरसीटीसी की कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि एक अन्य प्राइवेट कंपनी के ज़रिए इनकी सेवाएं ली जा रही थीं.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आख़िर उन ट्रेन होस्टेस का अब क्या होगा?
इस पर आईआरसीटीसी के अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं और ना ही प्राइवेट कंपनी वाले. दोनों का कहना है फ़िलहाल ये क्रू मेंबर प्राइवेट कंपनी के साथ ही हैं. ऐसे स्टॉफ़ जो आईआरसीटीसी के इस फ़ैसले से प्रभावित होंगे उनकी संख्या मुश्किल से 50-60 लोगों की होगी.
लेकिन सवाल है कि आगे कितने दिन तक ऐसे क्रू मेंबर्स को बैठा का सैलरी दी जाएगी?
नाम ना बताने की शर्त पर एक दूसरे अधिकारी ने बताया कि केटरिंग के लिए जो लाइसेंस फ़ीस आईआरसीटीसी ने ले रखी थी, आपात स्थिति में वो फ़ीस केटरिंग कॉन्ट्रेक्ट वालों को वापस की जा सकती है.
प्राइवेट ट्रेन चलाने के मॉडल पर सवाल
तेजस ट्रेन को रद्द करने की ख़बर को अब रेलवे के कर्मचारी रेलवे के निजीकरण की आगे की योजना से जोड़ कर भी देख रहे हैं.
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी शिव गोपाल मिश्रा ने तेजस के रद्द होने को लेकर एक तंज़ भरा ट्वीट किया है.
उनका कहना है कि रेलवे कर्मचारियों की यूनियन ने पहले ही प्राइवेट पार्टनर को ट्रेन चलाने देने का विरोध किया था.
उन्होंने सरकार को एक बार फिर से आगाह किया कि यही हाल 150 दूसरी ट्रेनों का भी होगा.
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दरअसल, जुलाई 2020 में भारतीय रेलवे ने 109 रूटों पर ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों से 'रिक्वेस्ट फ़ॉर क्वालिफ़िकेशन' यानी आरएफ़क्यू आमंत्रित किया था. ये रेलगाड़ियां अप्रैल 2023 में शुरू किए जाने का प्रस्ताव है.
लेकिन अब सवाल खड़ा हो रहा है कि पहली प्राइवेट ट्रेन 'तेजस' का हश्र देख कर अब दूसरी प्राइवेट कंपनियाँ ट्रेन चलाने के लिए कितना आगे आएंगी.
बीबीसी से बातचीत में शिव गोपाल मिश्रा कहते हैं, "छठ, दिवाली, दशहरा जैसे त्योहारों को छोड़ कर इन ट्रेनों की हालत ज़्यादातर समय ऐसी ही रहती है. प्राइवेट ट्रेन वाले किराया महँगा रखते हैं और सुविधाओं के नाम पर कुछ देते नहीं हैं. ट्रेन होस्टेस के नाम पर ग्लैमर दिखाने की एक कोशिश की गई थी, लेकिन भारत में ऐसी कोशिशें नहीं चल सकती."
ऐसा क्यों है कि भारतीय रेल दिल्ली से लखनऊ तक की दूसरी गाड़ियाँ चला पा रही है, लेकिन प्राइवेट ट्रेन नहीं चल पा रही हैं?
इस सवाल के जवाब में शिव गोपाल मिश्रा कहते हैं कि किराया ज़्यादा देकर बिना बेहतर सुविधाओं के दूसरी ट्रेन पर जनता क्यों सफ़र करेगी?
शिव गोपाल मिश्रा की माने तो चूंकि ट्रेन चलाने में प्राइवेट ट्रेनों को ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता है इसलिए वो किराया ज़्यादा वसूलती हैं और यही है प्राइवेट हाथों में ट्रेन का परिचालन देने का नुक़सान.
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