विज्ञापनो की जानकारी न देकर विभाग की कार्य प्रणाली पर उठे सवाल
हिमाचल क्राइम न्यूज़ ब्यूरो
शिमला।
जयराम सरकार का सत्ता में तीसरा वर्ष चल रहा है। सरकार वर्ष 2019 में और अब फिर विधानसभा में यह सवाल पूछा गया था कि उसने समाचार पत्रों वेब पोर्टल और इलैक्ट्राॅनिक चैनलों में कितने- कितने विज्ञापन इस दौरान जारी किये हैं। लेकिन इस प्रश्न के उत्तर में दोनों ही बार यही जवाब आया कि सूचना एकत्रित की जा रही है। प्रश्नों का ऐसा जवाब प्रायः तभी दिया जाता है जब सरकार कुछ छिपाना चाहती है क्योंकि ऐसा जवाब फिर लिखित सूचना के रूप में ऐसे वक्त में आता है जब उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
स्मरणीय है कि इस सरकार के समय में अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से सारे विभागों को यह निर्देश दिया गया था कि उनकी पूर्व अनुमति के बिना कोई विज्ञापन जारी न किया जाये। इसी के साथ कुछ पत्रों के विज्ञापनों पर मौखिक रूप से रोक लगा दी गयी थी लिखित में ऐसा आदेश संभव नहीं होता है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द हिन्दु और राजस्थान पत्रिका के मामलों में स्पष्ट कर चुका है कि विज्ञापनों पर खर्च किये जाने वाला पैसा ‘‘पब्लिक मनी’’ होता है और इसमें इस तरह का भेदभाव नही किया जा सकता। बल्कि कुछ इलैक्ट्राॅनिक चैनलों के मामले जो इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे उनमें भी यह प्रश्न उठा है और स्पष्ट किया गया है कि पब्लिक मनी में भेदभाव नही किया जा सकता इसके लिये पारदर्शी नीति बनाना अनिवार्य है।
समाचार पत्रों को उनकी प्रसार संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है और उसी के अनुसार विज्ञापन जारी किये जाने का प्रावधान है। प्रसार बढ़ाना समाचार पत्र के संसाधनों पर निर्भर करता है। इसके लिये केन्द्र सरकार ने समाचार पत्रों के लिये मुद्रण के साथ ही वेब साईट का बनाया जाना अनिवार्य कर दिया है। क्योंकि वेबसाईट या फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे डिजिटल माध्यमों से प्रसार की जानकारी मिल जाती है। इसलिये वेब पोर्टलों को भी पात्रता दी गयी है।
फिर अब तो केन्द्र सरकार ने बहुत सारे मुद्रणों पर रोक लगाते हुए डिजिटल व्यवस्था अपनाने के आदेश भी जारी कर दिये हैं हिमाचल सरकार भी विधानसभा की तर्ज पर सचिवालय को भी पेपर लैस करने जा रही है। इस तरह मुद्रण के समानान्तर डिजिटल व्यवस्था लागू की जा रही है। समाचार पत्रों पर भी इस व्यवस्था का असर हो रहा है। इसलिये सभी पत्रों के डिजिटल संस्करण आ रहे हैं। इसी मानक पर विज्ञापनों का वितरण किया जाता है।
लेकिन हिमाचल सरकार का सूचना और जन संपर्क विभाग अभी भी इस मानक के आधार पर काम नही कर रहा है। विज्ञापनों के मामले में भेदभाव किया जा रहा है। बल्कि विज्ञापन रोककर समाचार पत्र की आवाज़ दबाने की नीति अपनाई जा रही है। केन्द्र सरकार में बडे प्रसार वाले समाचार पत्रों के साथ छोटे पत्रों के लिये विज्ञापनों के बजट का एक निश्चित अनुपात तय कर रखा है। लेकिन प्रदेश का जन संपर्क विभाग इस सम्बन्ध में कोई पारदर्शी नीति बनाने की बजाये अभी भी दमन के हथकंडो पर चल रहा है।
इस सम्बन्ध में विभाग की दमन नीति तब सामने आ गयी जब समाचार पत्रों के संपादकों के साथ विभाग के निदेशक, फिर सचिव और अन्त में मुख्यमन्त्री के साथ भी विस्तार से बैठके होने के बावजूद आज तक कोई नीति नही बन पायी है। बल्कि विभाग की नीयत का खुलासा इससे और स्पष्टता से सामने आ जाता है कि साप्ताहिक समाचार पत्रों की 25 प्रतियां हर अंक की खरीदता है यह 25 प्रतियां सभी मन्त्रीयों और विभागों के सचिवों को उपलब्ध करवाई जा सकती है। लेकिन ऐसा किया नहीं जा रहा है।
लेकिन कुछ पत्र बाकायदा प्रमाणिक साक्ष्यों के साथ ऐसी जानकारियां पाठकों के सामने रखते हैं जिनसे सरकार को लाभ मिल सकता है। क्योंकि दैनिक पत्र ऐसा नहीं कर पाते हैं। ऐसी प्रमाणिक जानकारियों के कारण कुछ छोटे समाचार पत्रों के पाठकों की संख्या डिजिटल मंचों के माध्यम से बड़े समाचार पत्रों के बराबर हो जाती है। लेकिन सरकारी तन्त्र यह जानकारी मन्त्रीयों और प्रशासनिक सचिवों के सामने नही आने देता है। इससे सरकार को बहुत बार सही स्थिति की जानकारी ही नही मिल पाती है जबकि जनता डिजिटल के माध्यमों से उन जानकारियों पर अपनी प्रतिक्रियाएं भी दे चुकी होती है। सरकार की छवि और कार्यप्रणाली पर जो प्रश्नचिन्ह लगने होते हैं वह लग चुके होते हैं।
इस दौर में जो मीडिया के एक बड़े वर्ग पर गोदी मीडिया होने का लांछन लग रहा है और शायद यह वर्ग हर जगह मौजूद भी है। इसी के कारण आज आम आदमी उन पत्रकारों और समाचार मंचों को ज्यादा अधिमान दे रहा है जो पूरी बेबाकी से प्रमाणों सहित जनता के सामने जानकारियां रख रहे हैं। वैसे प्रदेश में लम्बे समय से यह इतिहास रहा है कि जब जब किसी सरकार ने मीडिया के सहारे श्रेष्ठता के तमगे को हासिल करने का प्रयास किया है जनता ने उसे उसी अनुपात में हार दी है।
शायद आज भी प्रशासनिक तन्त्र उसी नक्शे कदम पर चलने का प्रयास कर रहा है और इसका परिणाम भी पुरानी ही तरह का रहेगा। क्योंकि जनता सब जानती होती है और उसे सिर्फ याद दिलाने भर की आवश्यकता होती है।
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