वीरभद्र सिंह का इतिहास



आज वीरभद्र सिंह जन्मदिन है|
वीरभद्र सिंह (जन्म २३ जून १९३४) भारत गणराज्य के राज्य हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। वीरभद्र सिंह छ: बार हिमाचल प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री रहे चुके है।

वीरभद्रसिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1962 में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने के साथ हुई। 1962 से 2007 तक वे हिमाचल प्रदेश की राज्‍यसभा में सात बार सदस्‍य रहे। 1967 में लोकसभा में वे दूसरी बार निर्वाचित हुए।

1971 में तीसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी रहे। 1976-77 के दौरान वह पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सहायक मंत्री रहे। 1980 के लोकसभा चुनावों में उन्‍हें चौथी बार चुना गया। 1982-83 में वे राज्‍य उद्योग मंत्री रहे।

1983, 1990, 1993, 1998 और 2003 तक वे पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। 2009 में वे पांचवी बार लोकसभा के सदस्‍य के रूप में चुने गए। 31 मई 2009 को उन्‍हें केंद्रीय स्‍टील मंत्री बनाया गया। 19 जनवरी 2011 को उन्‍होंने सूक्ष्‍म,लघु और मध्‍यम उद्योगों के केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला। राजनीति के अलावा वीरभद्र सिंह इंडो-सोवियत मैत्री समिति के सदस्‍य भी हैं।

जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव


१९६२ में तीसरी लोकसभा के लिए चुने गए।[1]
१९६७ में ४ वीं लोकसभा के लिए चुने गए।[1]
१९७२ में ५ वीं लोकसभा के लिए चुने गए।
१९७६ में संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य।
दिसम्बर १९७६ से मार्च १९७७ तक भारत सरकार में पर्यटन और नागरिक उड्डयन के उपमंत्री बने।



१९७७ १९७९ और १९८० में प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने रहे।
१९८० में ७ वीं लोकसभा के लिए चुने गए।
सितम्बर, १९८२ से अप्रैल १९८३ तक भारत सरकार में उद्योग मंत्री बने।
अक्टूबर १९८३ और १९८५ में जुब्बल - कोटखाई विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। १९९०, १९९३, १९९८, २००३ और २००७ में रोहड़ू निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा के लिए चुने गए।
८ अप्रैल १९८३ से मार्च, ५ मार्च १९९० तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री।
दिसंबर १९९३ से २३ मार्च १९९८ तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री।
मार्च १९९८ से मार्च २००३ तक राज्य विधान सभा में हिमाचल प्रदेश के विपक्ष के नेता।
६ मार्च २००३ से २९ दिसम्बर २००७ तक हिमाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री।
२००९ में मंडी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से हिमाचल प्रदेश से निर्वाचित।
मई २००९ से जनवरी २०११ तक भारत सरकार में इस्पात मंत्री।
१९ जनवरी २०११ से जून २०१२ तक भारत सरकार में लघु और मझौले उद्यम मंत्री।
२६ अगस्त २०१२ से हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।
हिमाचल की जनता का है कर्ज
वीरभद्र सिंह मानते हैं कि प्रदेश की जनता ने उन्हें बहुत प्यार दिया है और अगर वह पांच जन्म भी लेते हैं तो भी इस प्यार का ऋण नहीं चुका सकते। सक्रिय राजनीति में वीरभद्र सिंह ने इस लम्बे सफल राजनीतिक जीवन के लिए कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा और प्रदेश की जनता के स्नेह और प्यार का नतीजा बताया है। दरअसल इसी बहाने उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वह सातवीं बार भी सीएम बनने को तैयार हैं।
आसानी से हथियार नहीं डालते वीरभद्र सिंह?
वीरभद्र सिंह की अपनी एक शख्सियत है। हिमाचल प्रदेश में वाई एस परमार के बाद वही एक ऐसे नेता हैं जिन्हें जनता का पूरा प्यार व समर्थन मिलता रहा है। हालांकि वह 84 साल के हो गये हैं, लेकिन आज भी उनमें वही ऊर्जा बरकार है जो शायद इस उम्र के शख्स में न हो। भले ही उनके खिलाफ चल रहे कथित भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उनके विरोधी उन्हें घेरने का प्रयास कर रहे हों। लेकिन उन्होंने आसानी से अपने हथियार नहीं डालने की जिद्द पकड़ रखी है। कांग्रेस हालांकि चुनावों के लिये तैयारियों में जुटी है। लेकिन क्या वीरभद्र सिंह को अलग थलग कर सत्ता में वापिसी संभव है? यह एक बड़ा सवाल है। प्रदेश के मौजूदा राजनैतिक हालात जो हैं। उससे साफ कहा जा सकता है कि भाजपा के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा उठाने में मौजूदा कांग्रेस संगठन पूरी तरह नाकाम रहा है।

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