हिमाचल के पिछले चार लोकसभा चुनाव के इतिहास पर गौर करें तो लगभग हर बार प्रदेश की सत्ता पर काबिज पार्टी की झोली में तीन लोकसभा क्षेत्र में जीत आई है। 3-1 के इस समीकरण को सिर्फ 2014 में कथित मोदी लहर के दौरान हिमाचल ने भी महसूस किया और तत्कालीन सरकार के बजाय सभी सीटें विपक्षी दल की झोली में चली गई।
2014 के इसी करिश्मे के बाद इस बार 2019 के सियासी समर में सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती सामने आ गई है। सत्ताधारी भाजपा जहां 3-1 के मिथक को तोड़ चारों सीटें हासिल करने के प्रयास में जुटी है, वहीं विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी पुरानी परंपरा को तोड़ इस बार अपने लिए सियासी गणित खड़ा करने में जुटी है।
2014 में टूटी थी सियासी परंपरा
अगर साल 2014 के लोकसभा चुनावों को छोड़ दें, तो 2009 में प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा की झोली में हमीरपुर, शिमला व कांगड़ा की तीन लोकसभा सीटें आई थीं जबकि विपक्ष में बैठी कांग्रेस को सिर्फ मंडी सीट से संतोष करना पड़ा था।
इसी तरह 2004 के चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस के हिस्से में कांगड़ा, मंडी और शिमला की सीट आई जबकि विपक्ष में बैठी भाजपा सिर्फ हमीरपुर ही जीत पाई।
1999 के लोकसभा चुनावों के दौरान प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और उसकी झोली में हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी की सीट आई जबकि विपक्ष की कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली।
उसकी जगह कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की बनाई हिमाचल विकास कांग्रेस ने शिमला की सीट अपने कब्जे में ले ली। 2014 के लोकसभा चुनावों में पहली बार हिमाचल की चुनावी परंपरा टूटी थी। सत्ता में कांग्रेस पार्टी थी और विपक्ष में भाजपा।
चुनावों से पहले यही माना जा रहा था कि इस बार भी हिमाचल में 3-1 का चुनावी गणित रहेगा लेकिन सियासी पंडितों के अंदाजों और प्रदेश की चुनावी परंपराओं के विपरीत पहली बार विपक्ष में बैठी भाजपा ने चारों सीटों पर अपनी जीत दर्ज की। यह पहली बार था जब प्रदेश में सत्ताधारी दल को प्रदेश की ही जनता ने नकार दिया था।
भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए 2014 बना बेंचमार्क
हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव बेंचमार्क बन गया है। वर्तमान में विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए जहां 2014 का चुनावी परिणाम यह बताता है कि मजबूत विपक्ष को भी प्रदेश की जनता का पूरा साथ देता है इसलिए पुरानी सियासी परंपरा को तोड़ने के लिए वह भी एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।
वहीं, चारों सीटों पर काबिज भाजपा के लिए भी 2019 के लोकसभा चुनावों में 3-1 की परंपरा को तोड़ने और 2014 के अपने सियासी परिणाम को दोहराने के लिए 2014 का चुनाव बेंचमार्क बन गया है।
Report:-Press Trust of India
©:-AU,PTI
Himachal Crime News
HP Bureau
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