श्याम सरन नेगी: 1951 के पहले चुनाव का पहला वोटर
हिमाचल क्राइम न्यूज़
ब्यूरो, किन्नौर।
फाइल फोटो: श्याम सरन नेगी |
102 साल के श्याम सरन नेगी, अपनी उम्र और शारीरिक तक़लीफों के बावजूद एक बार फिर से लोकतंत्र के पर्व में भाग लेने को उत्साहित हैं. स्वतंत्र भारत के पहले मतदाता के तौर पर मशहूर नेगी को भारतीय लोकतंत्र का लीविंग लीजेंड भी कहा जाता है. उन्हें 19 मई का इंतजार है, जब किन्नौर सहित हिमाचल प्रदेश में चुनाव होना है. किन्नौर, मंडी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है.
अपनी क्षीण आवाज़ में नेगी याद करते हैं, "अक्तूबर, 1951 में मैंने पहली बार संसदीय चुनाव में वोट डाला था, इसके बाद मैंने एक भी चुनाव मिस नहीं किया. मैं अपने वोट की अहमियत को जानता हूं. अब तो मेरा शरीर भी साथ नहीं दे रहा है, लेकिन आत्मशक्ति के चलते मैं वोट देने जाता रहा हूं. इस बार भी मताधिकार का इस्तेमाल करना है. हो सकता है कि ये मेरा आख़िरी चुनाव हो. यह उम्मीद है, जिसे मैं अपने जीवन के अंतिम चरण में छोड़ना नहीं चाहता."
जब हमलोग नेगी जी से मिलने पहुंचे उस वक्त वे चुनाव आयोग की ओर से भेजे गए बूथ अधिकारी (बीएलओ) और स्थानीय प्रशासन के लोगों से घिरे हुए थे और नींबू चाय पीते हुए स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव के मतदान वाले दिन से जुड़ी यादों को शेयर कर रहे थे.
नेगी कहते हैं, "हां, वो दिन मुझे पूरा याद है. वह मेरे जीवन का बड़ा दिन था." ऐसा कहते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है.
स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव के दौरान, किन्नौर में 25 अक्तूबर, 1951 को वोट डाले गए थे.
वैसे तो भारत में फ़रवरी-मार्च, 1952 में वोट डाले जाने थे लेकिन किन्नौर में जाड़ा और बर्फ़बारी की आशंका को देखते हुए कम से कम पांच महीने पहले चुनाव करा लिए गए थे.
नेगी उस वक्त पास के गांव मूरांग में स्कूली शिक्षक थे, लेकिन वे अपने गांव कल्पा (उस वक्त चिन्नी के नाम से जाना जाने वाला गांव) के वोटर थे.
पहले चुनाव में मतदान
नेगी बताते हैं, "मुझे अपने स्कूल में चुनाव कराना था. लेकिन मेरा वोट अपने गांव कल्पा में था. मैं एक रात पहले अपने घर आ गया था. सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गया. सुबह छह बजे अपने पोलिंग बूथ पर गया."
"मैंने वहां पोलिंग कराने वाले दल का इंतज़ार किया, जब वे आए तो मैंने उनसे अनुरोध किया कि मुझे वोट डालने दें क्योंकि इसके बाद मुझे जाकर मूरंग में चुनाव कराना है जो आठ से दस किलोमीटर दूर था. उन लोगों ने मुझे निर्धारित समय से आधा घंटा पहले साढ़े छह बजे मुझे वोट डालने दिया."
इसके बाद से नेगी ने एक भी चुनाव मिस नहीं किया, चाहे वह पंचायत का चुनाव रहा हो या फिर राज्य विधानसभा का चुनाव हो या फिर संसदीय चुनाव हो. उनका पोलिंग बूथ नंबर कल्पा 51 है, जहां कुल 928 मतदाता हैं, जिनमें 467 महिलाएं शामिल हैं. यह बूथ नेगी के घर से महज दो किलोमीटर की दूरी पर है. हालांकि पहले उनका बूथ महज 50 मीटर की दूरी पर था. लेकिन अब नेगी अपने बेटे के साथ नए घर में रहते हैं, तो दूरी थोड़ी बढ़ गई है.
नेगी पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं, "मैं ने अपने वोट को कभी व्यर्थ नहीं किया. लेकिन इस बार मैं 102 साल का हो गया है, मेरा स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है. उम्र के चलते मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता हूं. मेरे पांव लड़खड़ाने लगते हैं. मैं थक जाता हूं और चल नहीं पाता हूं. आंखों की रोशनी भी कम हो चुकी है. बावजूद इन सबके अगर तबीयत और ज़्यादा नहीं बिगड़ी तो मैं वोट देने जाऊंगा."
नेगी का जन्म पहली जुलाई, 1917 को हुआ था. वे भारत के सबसे बुर्जुग वोटर हैं. उन्हें कभी इसका एहसास नहीं था कि एक दिन युवा मतदाताओं को मोटिवेट करने के लिए उनका उदाहरण दिया जाएगा.
नेगी बताते हैं, "जब मेरे जैसा बुजुर्ग आदमी मतदान के दिन बूथ जा सकता है तो दूसरे क्यों नहीं जा सकते. निश्चित तौर पर, युवा मेरे जीवन से यह सीख ले सकते हैं."
2007 तक नेगी स्थानीय लोगों की तरह ही सरकारी प्राथमिक विद्यालय, कल्पा में अपना वोट देने जाते रहे थे. लेकिन 2007 में चुनाव आयोग ने आयकन बन चुके मतदाताओं, ख़ासकर पहले चुनाव में मत डालने वाले मतदाताओं की पहचान का काम शुरू किया था.
नेगी पहले चुनाव में वोट डालने वाले मतदाताओं में थे और उसके बाद उन्होंने कोई भी चुनाव मिस नहीं किया था. चुनाव आयोग ने अपने आर्काइव के आंकड़ों से इसकी पुष्टि भी की थी. राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा नंदा इसकी पुष्टि करती हैं जो उस वक्त के मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) थीं.
नेगी को बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला ने भी सम्मानित किया. चावला उनको सम्मानित करने खासतौर पर किन्नौर आए थे.
लीजेंड वोटर के तौर पर मान्यता मिलने पर नेगी बताते हैं, "मुझे बहुत अच्छा लगा. मुझ इस स्टेटस से प्यार भी है. इससे मेरा उत्साह बढ़ा. मुझे कई बार सम्मानित भी किया गया. इसके अलावा चुनाव आयोग हर मतदान के दिन मेरा स्वागत भी करती है. मैं स्कूलों में जाता हूं और बच्चों को मतदान के प्रति जागरूक करता हूं. अच्छा लगता है."
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले गूगन ने नेगी पर एक फ़िल्म बनाई थी- प्लेज टू वोट (Pledge To Vote). यह फिल्म इंटरनेट पर वायरल हुई थी, इसे फिल्मों के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन सहित तमाम दूसरे ब्रैंड एंबैसडरों ने भी देखा था.
सुधा देवी उनके गांव पहुंची और उनसे बात की. फिर इस बात की पुष्टि हुई कि उन्होंने 25 अक्तूबर, 1951 को पहली बार वोट दिया था और उसके बाद एक भी चुनाव मिस नहीं किया.
मनीषा नंदा बताती हैं, "हम लोगों के पास जितना डाटा था, सबका अध्ययन किया. यह मेरे लिए पीएचडी थिसिस लिखने जैसा था. लेकिन आख़िर में ये साबित हुआ कि उन्होंने हर चुनाव में मतदान किया है. सुधा देवी को फिर उनसे मिलने को कहा गया और उनका ऑडियो इंटरव्यू रिकॉर्ड किया गया."
ऑडियो रिकॉर्डिंग को चुनाव आयोग के पास भेजा गया ताकि उसकी तस्दीक हो सके. चुनाव आयोग ने भी रिसर्च करने के बाद पाया कि नेगी सही कह रहे थे और हिमाचल प्रदेश के सीईओ को रिकॉर्ड्स से भी मेल खा रहा था.
मनीषा नंदा बताती हैं, "चुनाव आयोग ने नेगी को ब्रैंड एंबैसडर बनाया और तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला कल्पा आकर उन्हें सम्मानित किया था."
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Report:-HCN Correspondent
Himachal Crime News
HP Bureau
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